कुलधरा-
भारतीय राज्य राजस्थान के जैसलमे ज़िले में स्थित है एक शापित और रहस्यमयी गाँव है जिसे भूतों का गाँव भी कहा जाता है। इस गाँव का निर्माण लगभग १३वीं शताब्दी मेंपालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। लेकिन यह १९वीं शताब्दी में घटती पानी की आपूर्ति के कारण पूरा गाँव नष्ट हो गया ,लेकिन कुछ किवदंतियों के अनुसार इस गाँव का विनाश जैसलमेर के राज्य मंत्री सलीम सिंह के कारण हुआ था। सलीम सिंह जो जैसलमेर के एक मंत्री हुआ करते थे वो गाँव पर काफी शख्ती से पेश आता था इस कारण सभी ग्रामवासी लोग परेशान होकर रातोंरात गाँव छोड़कर चले गए साथ ही श्राप भी देकर चले गए इस कारण यह शापित गाँव भी कहलाता है।
यह गाँव अभी भी भूतिया गाँव कहलाता है लेकिन अभी राजस्थान सरकार ने इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दे दिया है,इस कारण अब यहां रोजाना हज़ारों की संख्या में देश एवं विदेश से पर्यटक आते रहते है
भौगोलिक स्थिति-
यह स्थान (पूर्व ग्राम) जैसलमेर नगर से १८ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह गाँव ८६१ मी॰ x २६१ मी॰ के उत्तर-दक्षिण आयताकार क्षेत्र में फैला हुआ था। यह गाँव माता-रानी के मन्दिर को केन्द्र में रखकर उसके चारों और फैला हुआ था। इसमें तीन उत्तर-दक्षिण मार्ग थे जो विभिन्न स्थानों पर पूर्व-पश्चिम की पतली गलियों द्वारा मिलते थे।[5]
इस स्थान की अन्य दीवारें उत्तर एवं दक्षिण से देखी जा सकती हैं। ग्राम के पूर्वी भाग में छोटी ककणी नदी के रूप में एक सूखी नदी है। पश्चिमी भाग मानव निर्मित कृतियों की दीवारों से सुरक्षित है।[5]
कुलधरा गाँव – ब्राह्मणों के क्रोध का प्रतीक जहां आज भी लोग जाने से डरते हैं। राजस्थान के जैसलमेर शहर से 18 किमी दूर स्थित कुलधरा गाव आज से 500 साल पहले 600 घरो और 85 गावो का पालीवाल ब्रह्मिनो का साम्राज्य ऐसा राज्य था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, रेगिस्तान के बंजर धोरो में पानी नहीं मिलता वहाँ पालीवाल ब्रह्मिनो ने ऐसा चमत्कार किया जो इंसानी दिमाग से बहुत परे थी, उन्होंने जमीन पे उपलब्ध पानी का प्रयोग नहीं किया,न बारिश के पानी को संग्रहित किया बल्कि रेगिस्तान के मिटटी में मोजूद पानी के कण को खोजा और अपना गाव जिप्सम की सतह के ऊपर बनाया,उन्होंने उस समय जिप्सम की जमीन खोजी ताकि बारिश का पानी जमीन सोखे नहीं, और आवाज के लिए गाव ऐसा बंसाया की दूर से अगर दुश्मन आये तो उसकी आवाज उससे 4 गुना पहले गाव के भीतर आ जाती थी। हर घर के बीच में आवाज का ऐसा मेल था जेसे आज के समय में टेलीफोन होते हे, जैसलमेर के दीवान और राजा को ये बात हजम नहीं हुई की ब्राह्मण इतने आधुनिक तरीके से खेती करके अपना जीवन यापन कर सकते हे तो उन्होंने खेती पर कर लगा दिया पर पालीवाल ब्रह्मिनो ने कर देने से मना कर दिया, उसके बाद दीवान सलीम सिंह को गाव के मुखिया की बेटी पसंद आ गयी तो उसने कह दिया या तो बेटी दीवान को दे दो या सजा भुगतने के लिए तयार रहे, ब्रह्मिनो को अपने आत्मसम्मान से समझोता बिलकुल बर्दास्त नहीं था इसलिए रातो रात 85 गावो की एक महापंच्यात बेठी और निर्णय हुआ की रातो रात कुलधरा खाली करके वो चले जायेंगे, रातो रात 85 गाव के ब्राह्मण कहा गए केसे गए और कब गए इस चीज का पता आजतक नहीं लगा। पर जाते जाते पालीवाल ब्राह्मण शाप दे गए की ये कुलधरा हमेसा वीरान रहेगा इस जमीन पे कोई फिर से आके नहीं बस पायेगा,
आज भी जैसलमेर में जो तापमान रहता हे गर्मी हो या सर्दी,कुलधरा गाव में आते ही तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाती हे.विज्ञानिको की टीम जब पहुची तो उनके मशीनो में आवाज और तरगो की रिकॉर्डिंग हुई जिससे ये पता चलता हे की कुलधरा में आज भी कुछ शक्तिया मोजूद हे जो इस गाव में किसी को रहने नहीं देती.मशीनो में रिकॉर्ड तरंग ये बताती हे की वहाँ मोजूद शक्तिया कुछ संकेत देती हे, आज भी कुलधरा गाव की सीमा में आते हे मोबाइल नेटवर्क और रेडियो कम करना बंद कर देते हे पर जेसे ही गाव की सीमा से बाहर आते हे मोबाइल और रेडियो शुरू हो जाते हे,
आज भी कुलधरा शाम होते ही खाली हो जाता हे और कोई इन्सान वहाँ जाने की हिम्मत नहीं करता.जैसलमेर जब भी जाना हो तो कुलधरा जरुर जाए. ब्राह्मण के क्रोध और आत्मसम्मान का प्रतीक है, कुलधरा।
स्थापना-
कुलधरा गाँव मूल रूप से पाली से जैसलमेर विस्थापितब्राह्मणों द्वारा बसाया गया। पाली मूल के इन लोगों को पालीवाल कहा जाता है। लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित १८९९ की इतिहास की पुस्तक तवारिख-ए-जैसलमेरके अनुसार कधान नामक पालीवाल ब्राह्मण कुलधरा गाँव में बसने वाला प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने गाँव में उधानसर नामक एक तालाब खोदा।
गाँव के खंडहरों के बीच विभिन्न देवलीयों (स्मारक पत्थर) सहित ३ श्मशान घाट हैं। देवली शिलालेखों के अनुसार, गाँव की स्थापना १३वीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुई। ये शिलालेख भट्टिक संवत् (एक पंचाग प्रद्ति जो ६२३ ई॰ से आरम्भ होती है) में दिनांकित हैं और दो निवासियों के निधन के रूप में क्रमशः १२३५ ई॰ और १२३८ ई॰ अंकित हैं।
जनसंख्या-
गाँव में अब ४०० खण्डहर घर देखे जा सकते है, जिसमें अब वर्तमान में कोई नहीं रहता है किन्तु किंवदन्तियों के अनुसार यहाँ भुत रहते है। लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित इतिहास ग्रन्थ तवारीख-ए-जैसलमेर (१८९९) जिसमें लिखा गया है कि यहां पालीवाल ब्राह्मण जाति के लोग रहते थे। जबकि ऱेजवी के मुताबिक यहाँ १७वीं १८ वीं शताब्दी में कुलधरा गाँव में तकरीबन १५८८ लोग रहते थे। एक ब्रिटिश अधिकारी के अनुसार यहां की जनसंख्या १८१५ ईस्वी में कुल ८०० ही थी जिसमें २०० परिवार थे।
सामाजिक समूह-
वहां काफी अन्य देवाली शिलालेख हैं। ये अभिलेख पालीवाली शब्द का उल्लेख नहीं करते। ये शिलालेख यहाँ के निवासियों कोब्राह्मण बताया हैं। काफी अभिलेख इन निवासियो को कुलधर या कलधर जाति का बताते हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि पालीवाल ब्राह्मणों में कुलधर एक जाति समूह था, और इन्हीं के नाम पर गांव का नाम पड़ा। कुछ अभिलेख इन निवासियों के जाति और गोत्र का भी उल्लेख करते हैं। अन्य जातियां जिनका अभिलेख में उल्लेख हैं, वें हैं - हरजल, हरजलु, हरजलुनी, मुगदल, जिसुतिया, लोहार्थी, लहठी, लखर, सहारन, जग, कलसर और महाजलार। गोत्र जिनका उल्लेख हैं वें हैं, असमर, सुतधाना, गर्गवी, और गागो। एक अभिलेख गोनाली के रूप में एक ब्राह्मण के कुल (परिवार की वंशावली) का उल्लेख करता हैं। पालीवाल ब्राह्मण के आलावा एक अभिलेख दो सूत्रधार का उल्लेख करता हैं, जिनका नाम धन्मग और सुजो गोपालना हैं। ये अभिलेख दर्शाते हैं कि, ब्राह्मण निवासी ब्राह्मण समाज में ही शादी (सगोत्री विवाह) करते थे, जबकि जातियां दूसरे गोत्र में विवाह करती थी।
धर्म-
कुलधरा गाँव के लोग वैष्णव धर्म के थे। इस गाँव का मुख्य मन्दिर विष्णु भगवान और महिषासुर मंदिनी का है। हालाँकि ज्यादातर मूर्तियां गणेश जी की भी है जो प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित है। गाँव के लोग विष्णु महिषासुर मंदिनी और गणेश जी के अलावा बैल और स्थानीय घोड़े पर सवार देवता की भी पूजा करते थे।
वेशभूषा-
कुलधरा गाँव में लोग जिसमें पुरुष लोग मुगलिन अंदाज की पगड़ी अथवा साफा पहनते थे जबकि पजामा भी पहनते थे साथ ही कमर पर कमरबंध (belt) बांधते थे। इनके अलावा कंधे पर अंगरखा (जो एक बड़ा परिधान होता है ,जिसे रुमाल भी कह सकते है) भी रखते थे। पुरुष लोग इन सब के अलावा गले में कुछ हार भी पहनते थे।
महिलाएं मुख्यतः लहेगे पहनती थी जबकि अंगरखा ये महिलाएं भी रखती थी, साथ ही गले में कुछ हार भी पहना करती थी।
अर्थव्यवस्था-
कुलधरा गाँव के लोग ज्यादातर खेती का व्यापार ,बैंकरों का कार्य और किसान हुआ करते थे ,साथ ही मिट्टी के बर्तन भी बनाया करते थे ,ये अलंकृत बर्तनों का इस्तेमाल करते थे, वे जलसंचय के लिए खड़ीन का इस्तेमाल करते थे जो एक कृत्रिम निचाई वाला हिस्सा होता था जिसके तीन ओर बाँध बना दिये जाते थे। जब खड़ीन का पानी सूख जाता तो पीछे बची मिट्टी ज्वार,गेहू और चने की फसल के लिए अनुकूल होती। एक २.५ किलोमीटर लंबी और २ किलोमीटर चौड़ी खड़ीन कुलधरा के दक्षिण दिशा में मौजूद थी। खेती करने में गाँव के लोग ककनी नदी या काकनी नदी और कुछ कुओं से पानी सींचते थे।
ककनी नदी जो शाखाओं में विभाजित थीं ,एक जिसे "मसुरड़ी नदी" कहा जाता था ,और दूसरी जो कि एक नाली के रूप में थी। ककनी नदी जो कि एक मौसमी नदी है जब यह सूख जाती थी तब गाँव के लोग घरों से दूर बने कुओं से पानी लेकर आते थे। एक स्तम्भ शिलालेख से पता चलता है कि गाँव में तेजपाल नाम का एक ब्राह्मण हुआ करता था, जिसने एक बावड़ी का निर्माण करवाया था। यह ब्राह्मण कुलधरा गाँव का ही रहने वाला था।
पतन-
जो गाँव इतना विकसित था तो फिर क्या वजह रही कि वो गाँव रातों रात वीरान हो गया। इसकी वजह था गाँव का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी गन्दी नज़र गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे।
फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।
किंवदन्ती-
कुछ लोगों का मानना है कि यहां पानी की समस्या के कारण लोग गाँव छोड़कर नहीं गए बल्कि जैसलमेर राज्य के मंत्री सलीम सिंह के अत्याचार के कारण गए थे। किंवदंतियों के अनुसार यहां पर काफी संख्या में लोग रहा करते थे जिसमें एक मुखिया भी हुआ करता था ,मुखिया की एक सुंदर पुत्री भी थी यह बात कुलधरा गाँव से बाहर निकली और जैसलमेर राज्य तक पहुंची। जब इसका पता सलीम सिंह को चला तो वह उस सुंदर कन्या पर रूप मोहित हो गया इस कारण उसने गाँव वालों पर दबाव बनाने लगा। सलीम सिंह चाहता था कि वह मुखिया की पुत्री से शादी करे लेकिन गाँव वाले कतई नहीं चाहते थे ब्राह्मण समाज का नाम छोटा पड़े। इस कारण गाँव के मुखिया ने एक रात सभा बुलाई और सभी ने फैसला लिया कि हम लोग रातों रात यह गाँव छोड़कर चले जाएंगे ,अन्यथा यह गाँव की कन्या से शादी कर देगा। फिर एक रात सभी गांववाले पूरा गाँव को छोड़कर किसी दूसरे गाँव में चले गए। लोगों का कहना है कि ये गाँव वाले जाते -जाते यह श्राप भी देकर गए थे कि यहाँ फिर कोई नहीं बस पायेगा इसलिए वर्तमान में यह राजस्थान के जैसलमेर का गाँव एक शापितगाँव कहलाता है।
पर्यटन स्थल-
पूर्व में इस गाँव में घूमने जाने के लिए के अनुमति नहीं थी ,क्योंकि इस गाँव को भूतिया गाँव कहा जाता है लोगों के अनुसार यहां भूत रहते है। लेकिन अभी राजस्थान सरकार ने यह दावा किया है कि यहाँ कोई भूत नहीं रहते है इसलिए सभी के लिए खोल दिया है और पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया है। इस कारण अब यहां हज़ारों की संख्या में लोग घूमने आते है। यहाँ स्थानीय लोग ही नहीं अपितु देश एवं विदेश से भी आते है।